जय शिव ओमकारा, ओम जय शिव ओमकारा
गाना "जय शिव ओमकारा" भगवान शिव की महिमा और उनके दिव्य रूप का गुणगान करने वाला एक अत्यंत प्रसिद्ध भक्ति गीत है। इस गीत में भगवान शिव के अनेक रूपों और उनके विविध गुणों का वर्णन किया गया है, साथ ही उनके असीम आशीर्वाद और महिमा का बखान भी किया गया है।
गीत की शुरुआत "जय शिव
ओमकारा" के उच्चारण से होती है, जो भगवान शिव के अस्तित्व और शक्ति का प्रतीक है। ओमकार शब्द शिव
के ब्रह्म स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि 'ॐ' को सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी ब्रह्म के रूप में
माना जाता है।
गीत में भगवान शिव के विभिन्न रूपों का विवरण दिया गया है:
- पहले
श्लोक में शिव को ब्रह्मा, विष्णु और सदाशिव के रूप में
चित्रित किया गया है। यहां भगवान शिव के साथ अर्धांगिनी के रूप में माता
पार्वती की भी महिमा की गई है।
- दूसरे
श्लोक में शिव के वाहन नंदी, उनके दिव्य आभूषण, और उनके रूपों का विस्तार से वर्णन किया गया है। उनके शरीर पर
विभिन्न आभूषण, माला और तंत्र-मंत्र से जुड़ी वस्तुएं
हैं।
- तीसरे
श्लोक में भगवान शिव के त्रिगुण रूप (सत्व, रजस,
तमस) और उनके त्रिभुवन में प्रभाव का विस्तार से उल्लेख है।
- चौथे
श्लोक में भगवान शिव की उपासना में आने वाली सामग्री जैसे भांग, धतूरा, और उनके निवास स्थान कैलास पर्वत की बात
की गई है।
- पांचवे
श्लोक में काशी में स्थित भगवान विश्वनाथ के दर्शन का वर्णन किया गया है। शिव
के दर्शन से भक्तों को अपार सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
गाने में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसमें शिव के प्रतीक
स्वरूप, उनके वाहन (नंदी), उनके
शरीर के विशेष चिन्ह जैसे जटा में गंगा का बहना, शेष नाग का
लिपटना और उनके भूत-प्रेतों के साथ जुड़ा रूप सब कुछ बताया गया है। साथ ही,
उनके साथ लक्ष्मी, सावित्री, और पार्वती की उपस्थिति को भी दर्शाया गया है, जो
शिव के साथ साझेदारी करती हैं और उनकी शक्ति को बढ़ाती हैं।
गीत के अंत में, एक सुंदर संदेश
है कि जो भी भक्त इस गीत की आरती श्रद्धा भाव से गाता है, वह
भगवान शिव के आशीर्वाद से सुख-सम्पत्ति और शांति प्राप्त करता है। शिव की उपासना
से जीवन में खुशियाँ और मुक्ति मिलती है, और भक्तों का हर
कष्ट दूर हो जाता है।
कुल मिलाकर, यह गाना भगवान शिव की महिमा, उनके अनंत रूप और उनके प्रति असीम भक्ति को दर्शाता है। यह गीत भक्तों को भगवान शिव के प्रति श्रद्धा, प्रेम, और समर्पण की भावना उत्पन्न करता है।
जय शिव ओमकारा, ओम जय शिव ओमकारा,
ब्रम्हा, विष्णु, सदाशिव, अर्धांगि
धारा।
ॐ जय शिव ओमकारा
एकानां चतुरानां पंचानं राजे,
हंसानां गरुड़ासन वृषभाहन् साजे।
ॐ जय शिव ओमकारा
दो भुज चार चतुर्भुज दशमुख अति सोहे,
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।
ॐ जय शिव ओमकारा
अक्षमाला वनमाला मुंडमाला धारी,
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।
ॐ जय शिव ओमकारा
श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे,
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे।
ॐ जय शिव ओमकारा
कर के मध्य कमंडलु चरका त्रिशुलाधारी,
सुखाकारी दुखाहारी जगपालन कारी।
ॐ जय शिव ओमकारा
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव जानत अविवेक,
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनो एका।
ॐ जय शिव ओमकारा
लक्ष्मी वा सावित्री पार्वती संगा,
पार्वती अर्धांगी, शिवलहरी गंगा।
ॐ जय शिव ओमकारा
पर्वत सोहे पार्वती, शंकर कैलास,
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।
ॐ जय शिव ओमकारा
जटा में गैंग बहत है, गल मुंडन माला,
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगचला।
ॐ जय शिव ओमकारा
काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रम्हचारी,
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।
ॐ जय शिव ओमकारा
त्रिगुणस्वामीजी की आरती जो कोई नर दे,
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे।
ॐ जय शिव ओमकारा
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